Tuesday 20 September 2016

"क़ैद"

तुम बिन तन्हाई की 
कोठरी में क़ैद हूँ 
तुम आओ 
मुझे आज़ाद कर दो। 
 ( डॉ. चंचल भसीन )

Friday 16 September 2016

ख़ामोशी- डॉ. चंचल भसीन

आओ

आज इस ख़ामोशी को 

तोड़कर 

उस मोहब्बत--जां में 

चलें

यहाँ बातें तुम करो

मैं सुनूँ

और

कुछ बातें मैं करूँ 

और 

तुम सुनो!

शब्दों के गूढ़ार्थों को

समझे,

उसमें समाएँ,

हो गिला किसी बात का

फ़ुरसत के लम्हों को 

सँवारे,

बे दखल होकर!

आत्माओं को तृप्त करें 

रहे कोई तृष्णा 

पुर्नजन्म की!

(डॉ. चंचल भसीन)

Monday 29 August 2016

"रिश्ते"- डॉ. चंचल भसीन

      "रिश्ते"
जिंदगी की भागदौड़ में
अपने लिए जीना भूल गई
रिश्तों  को ख़ुश करते-करते
अपने आज को भूल गई
किसी को मनाया
किसी को समझाया
बस यही दस्तूर निभाया
फिर भी आज तक किसी को ख़ुश नहीं पाया
कभी सोचूं क्या यही जिंदगी है
मैंने तो जिंदगी जी ही नहीं 
क्यों है दूसरों की परवाह मुझे?
क्यों रहती है फ़िकर?
मैं अपने लिए जीऊँ!
जीना चाहती हूँ अपनी जिंदगी 
विना परवाह किए
धूल-मिट्टी में खेलते बच्चों जैसे
जिन्हें नहीं है ख़बर दुनिया की 
ज़हरीली सफ़ाई की।
          (डॉ. चंचल भसीन) 

Thursday 23 June 2016

"याद" (डॉ. चंचल भसीन)

  "याद" (डॉ. चंचल भसीन)
तुम याद आए, बहुत याद आए
जब सूरज ने दी दस्तक  
खिड़की दरवाज़े से अंदर झाँका 
चुपके से कानों में 
कहा गुड मोर्निंग 
तुम याद आए, बहुत याद आए।
तेरे बोल मेरे कानों में गूँजने लगे
मुझे तेरी यादों में भिगोने लगे 
जब इंतज़ार करने पर 
आया न कोई संदेशा 
तुम याद आए बहुत याद आए
पर दिल न माने के 
तुम न आओ गए
दिन निकला उदासी में 
दिल में दहके अंगारे 
शाम होते 
सूरज भी निकल पड़ा अपने
पड़ाव की ओर 
छोड़ अंधेरे में तड़पता मुझे तब
तुम याद आए बहुत याद आए
    ( डॉ. चंचल भसीन )



Wednesday 22 June 2016

"याद" (डॉ. चंचल भसीन)

  "याद" (डॉ. चंचल भसीन)
तुम याद आए, बहुत याद आए
जब सूरज ने दी दस्तक  
खिड़की दरवाज़े से अंदर झाँका 
चुपके से कानों में 
कहा गुड मोर्निंग 
तुम याद आए, बहुत याद आए।
तेरे बोल मेरे कानों में गूँजने लगे
मुझे तेरी यादों में भिगोने लगे 
जब इंतज़ार करने पर 
आया न कोई संदेशा 
तुम याद आए बहुत याद आए
पर दिल न माने के 
तुम न आओ गए
दिन निकला उदासी में 
दिल में दहके अंगारे 
शाम होते 
सूरज भी निकल पड़ा अपने
पड़ाव की ओर 
छोड़ अंधेरे में तड़पता मुझे तब
तुम याद आए बहुत याद आए
    ( डॉ. चंचल भसीन )



Thursday 26 May 2016

नादान

नींद भी मेरी 
तरह नादान ही है 
जो हर समय 
इंतज़ार में रहती है 
(डॉ. चंचल भसीन)

Wednesday 25 May 2016

मन ( डॉ. चंचल भसीन )

मन चंचल ऐ
मन चंचल ऐ
उड़दा फ़िरदा
नेईं समींदा
नेईं पतींदा
करदा अड़िया
लांदा झड़ियाँ 
राड़-बराड़ करदी रौह्नी 
एह्दे'नै लग्गी रौह्नी 
सोचा फ्ही
मन चंचल ऐ।
बौंह्दा फ्ही जाईं
उच्ची टिसी
चांह्दा दुनिया'नै मिलना
दिक्खदा जिसलै छलदी दुनिया
लगदा खिंझन
मिगी खंझान
एह्दे'नै मिं बड़ी परेशान
सोचा फ्ही
मन चंचल ऐ।
जद् दिक्खै मिं निम्मोझान
होंदा फ्ही एह् परेशान 
गले'नै लांदा मिं पतेआंदा 
बनदा साह्रा
होंदा गुज़ारा 
सोचा फ्ही 

मन चंचल ऐ।              ( डॉ. चंचल भसीन )